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मध्यप्रदेश पी एस सी परीक्षा 2019 में अपनाई गई प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर


जबलपुर । मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के अनेक बिरोधाभाषी फैसलों में एकरूपता हेतु ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के विधिक सहयोग से सुप्रीम कोर्ट में दायर SLP 5817/2023 में दिनांक 01/5/2024 को जजमेंट प्रसारित कर दिया गया है, उक्त याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक 28/02/24 को सुनवाई करके फैसला हेतु रिजर्व किया गया था।उक्त याचिका के साथ PSC 2019 के लगभग 200 से अधिक सामान्य वर्ग के अभ्यार्थियो ने भी SLP NO. 23514/2023 तथा 27620/2023 दायर कर जस्टिस शील नागू की खंडपीठ द्वारा हाईकोर्ट के 1255 पदों की भर्ती से सम्वधित पारित फैसला दिनांक 02/01/2023 के अनुसार आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में (प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा) में शामिल नहीं किए जाने की राहत चाही गई थी।सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की दो डिवीजन बेंचो के परस्पर विरोधाभाष उत्पन्न करने वाले फैसले थे।पहला फैसला जस्टिस सुजय पाल एवं डी.डी. बंसल का जो याचिका क्रमांक 807/2021 से कनेक्ट 29 याचिकाओं में दिनांक 07/04/2022 को पारित करके कमलनाथ सरकार द्वारा दिनांक 17/02/2020 को राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था तथा PSC परीक्षा 2019 का रिजल्ट पुनः पूर्व नियमो के अनुसार जारी किए जाने का निर्देश दिया गया था एवं आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) का अर्थान्वयन करके कहा गया था कि ‘परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सभी वर्गो के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों से भरे जाने चाहिए।यदि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को भर्ती के अंतिम चरण में शामिल किया जाएगा तो ये संविधान के अनुच्छेद 14, 16 तथा 21 का उल्लंघन होगा तथा आरक्षित वर्ग के कम अंक वाले अभ्यर्थियों को प्रथम स्टेज से ही बाहर कर दिए जाने से आरक्षण के उद्देश्य विफल हो जाएगा।
हाईकोर्ट द्वारा की जाने वाली तमाम भर्तियों में 100% आरक्षण लागू किया जाता है,समस्त अनारक्षित पदों को प्रारम्भिक तथा मुख्य परीक्षा के रिजल्ट में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को शामिल नहीं किया जाता है।जिला न्यायलयो के 1255 पदों की भर्तियो में अनारक्षित वर्ग की कटाफ अंक 74 तथा ओबीसी का 88 नियत किया गया। जिसके विरूद्ध आरक्षित वर्ग के सैकड़ो अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई।जिनको अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों से ज्यादा अंक प्राप्त हुए थे फिर भी उन्हें हाईकोर्ट ने मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं किया गया तथा फेल / असफल घोषित कर दिया गया था।उनकी याचिका क्रमांक 8750/22 पर डिवीजन बेंच क्रमांक -दो, के जस्टिस शील नागू तथा जस्टिस वीरेंदर सिंह की खंडपीठ ने दिनांक 02/01/2023 को असंवैधानिक फैसला पारित कर हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई अवैधानिक प्रक्रिया को वैधानिक करार कर दिया तथा जुडीसियल डिसीप्लेन को दरकिनार करते हुए, डिवीजन बैच क्रमांक तीन द्वारा याचिका क्रमांक 807/2021 में पारित फैसला दिनांक 07/04/2022 को अवैधानिक घोषित कर दिया गया। तथा आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को चयन प्रक्रिया के अंतिम चरण में शामिल किए जाने की व्यस्था दी गई।जस्टिस शील नागू के फैसला दिनांक 02/01/2023, को आधार बनाकर PSC 2019 के सामान्य वर्ग के सैकड़ों अभ्यर्थियों द्वारा सुप्रीमकोर्ट में SLP (C ) 23514/2023 तथा SLP (C) 27620/2023 दाखिल करके मांग की गई थी की आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा के रिजल्ट में, अनारक्षित वर्ग में शामिल न किया जाए तथा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच क्रमांक तीन के जस्टिस सुजय पाल की खंडपीठ द्वारा पारित फैसला 07/04/2022 के परिपालन में, PSC 2019 के रीवाइज रिजल्ट में लगभग 2721 मुख्य परीक्षा हेतु, सफल घोषित आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को बाहर किया जाए , तथा PSC द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को अवैधानिक घोषित किया जाने की राहत चाही गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 28/02/2024 को उपरोक्त समस्त याचिकाओं की विस्तृत सुनवाई की जाकर दिनांक 01/05/2024 को 22 पेज का फैसला प्रसारित किया गया।उक्त फैसले में लोक सेवा आयोग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को विधिक करार दिया गया तथा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच क्रमांक तीन के जस्टिस सुजय पाल द्वारा याचिका क्रमांक 542/21 तथा 807/21 से कनेक्ट समस्त याचिकाओं में पारित फैसला दिनांक 07/04/2022 को संवैधानिक करार दिया गया तथा जस्टिस शील नागू की खंडपीठ द्वारा पारित फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण मानकर सामान्य वर्ग द्वारा दायर याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए व्यवस्था दी गई।आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को प्रारंभिक तथा मुख्य परीक्षा के परिणामो में अनारक्षित वर्ग में शामिल किया जाना है संविधान सम्मत तथा मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 के नियम 4 एवं लोक सेवा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) के अर्थन्वयन के सम्बंध में जस्टिस सुजय पाल की खंडपीठ द्वारा पारित फैसला संविधान सम्मत है।सुप्रीम कोर्ट ने आपने फैसले में स्पष्ट करते हुए कहा की यदि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान् अभ्यर्थियों को परीक्षा के प्रारम्भिक तथा मुख्य चरण मे अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया जाएगा तो आरक्षण नीति का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा तथा समस्त अनारक्षित पद आरक्षित हो जाएगे।
PSC द्वारा 2019 की विशेष परीक्षा में अपनाई गई नार्मलाईजेशन की प्रक्रिया को संवैधानिक करार दिया गया।याचिका कर्ता की ओर से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, रामेश्वर सिंह ठाकुर,विनायक शाह,समृद्धि जैन ने की।

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