देवास जिले के ग्राम पानीगांव मे निजी वाहनों में भूसे की तरह भर रहे बच्चे,मासूमों की जान के साथ खिलवाड़

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विकास नंदानिया /दैनिक आवाज़ / पानीगांव । शासन की सख्ती का असर स्कूल संचालकों पर नहीं दिख रहा है। स्कूल वाहन के नाम पर अनट्रेंड हाथों में स्टेयरिंग और डग्गामार वाहन धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं। पास ही के जिले इंदौर मे फरवरी माह की घटना के बाद भी जिले में संचालित स्कूल प्रबंधन नहीं चेत रहे हैं।टाटा मैजिक,आटो, फिटनेस फेल बस और मिनी बसों में बच्चों को स्कूल लाया और पहुंचाया जा रहा है। परिवहन विभाग सिर्फ निर्देशों तक सिमटकर रह गया है। प्राइवेट विद्यालयों में बच्चों को ढोने के लिए नियम और कानून बने हैं। निर्धारित पीली रंग की बसों और उस पर लाल रंग की पट्टी व बीच में गोल निशान में स्कूल वाहन और आन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए। इसके अलावा अन्य किन्हीं चार पहिया वाहनों को बच्चों को लाने-ले जाने के लिए अनुमति नहीं दी जाती। परिवहन विभाग चार पहिया वाहनों में केवल स्टाफ को ढोने की परमिट देती। इसके विपरीत हकीकत यह कि कुछ स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो अधिसंख्य प्राइवेट स्कूलों में टाटा मैजिक,आटो रिक्शा और टैक्सी जैसे वाहनों से बच्चों को ढोया जा रहा है। इसमें न तो सुरक्षा मानक का भी कोई ध्यान नहीं दिया गया है। इसके साथ ही अप्रशिक्षित हाथों में वाहनों की स्टेयरिंग थमा दी जा रही है।जिला मुख्यालय में संचालित विद्यालयों में बच्चों को स्कूल वैन के माध्यम से घर से स्कूल तक लाने ले जाने का कार्य किया जा रहा है। साथ ही कुछ स्कूल वैन कॉमन सर्विस के तहत चल रहे है। अभिभावकों से मोटी रकम वसूलने के बावजूद स्कूल वैन का रेगुलर मेंटेनेंस, फिटनेस और इंश्योरेंस पर विद्यालय प्रबंधन ध्यान नहीं देता है।विद्यालय में बच्चों के परिवहन के लिए उपयोग में आने वाली स्कूल वैन का कमर्शियल पंजीकरण होने के साथ-साथ स्कूल का परमिट और परिवहन में उपयोग आने वाले वाहन का फिटनेस, इंश्योरेंस मासूम बच्चों की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।देवास जिले के ग्राम पानीगांव एवं आस – पास के ग्रामो मे भी यही मंजर देखने को मिल रहा है।स्कूल खुलते ही मासूमों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ शुरू हो गया है। यहाँ स्कूली बच्चे प्राइवेट वाहनों से ढोए जा रहे हैं। सात सीट वाले वाहन में 15 से 20 बच्चों को भूसे की तरह ठूंसकर ले जाया जा रहा है। कई वाहन अनफिट होने के बावजूद सड़कों पर दौड़ रहे है। इन वाहनों पर कार्रवाई न होने से बच्चों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है।इन वाहनों में सुरक्षा के कोई मानक नहीं है। न आग बुझाने के यंत्र हैं और न ही मेडिकल किट, खिड़कियों पर भी किसी तरह का कोई अवरोध इन वाहनों पर नहीं है।जब कभी ऐसे वाहनों से कोई हादसा हो जाए तो वह यह कहकर बच सकते हैं कि वाहन उनके विद्यालय के नाम पर पंजीकृत नहीं है। यह सब सड़कों पर रोजाना हो रहा है फिर भी जिम्मेदार अफसर अनजान बने हुए हैं।अभिभावकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका बच्चा किस वाहन से आ-जा रहा है। ड्राइवर के पास लाइसेंस है या नहीं। वाहन का रंग पीला है या नहीं? उसमें सुरक्षा के इंतजाम हैं कि नहीं? अगर अभिभावक पैसे दे रहे हैं तो उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वह इस बात की पुष्टि करें कि उनके बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ न हो रहा हो।निजी वाहन स्वामी को यह अधिकार नहीं है कि वह स्कूली बच्चों को लेकर जाएं। अगर वह स्कूली बच्चों को लेकर जाना चाहते हैं तो उनका वाहन व्यावसायिक की श्रेणी में होना जरूरी है। इसके बाद स्कूली वाहन की सारी गाइलाइन का पालन करना जरूरी है। निजी वाहन अगर स्कूली बच्चों को ले जाते पाए जाएंगे तो उन पर कार्रवाई की जाना आवश्यक हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के ये हैं निर्देश :
स्कूली वाहनों में एलपीजी गैस का उपयोग न हो।
स्कूली वाहन ओवरलोड न हो।
स्कूली वाहनों का रंग पीला हो, ताकि दूर से पता चले कि ये स्कूली वाहन हैं।
स्कूली वाहनों के पीछे स्कूल का नाम व नंबर लिखा होना चाहिए।

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