प्रमोशन पर ब्रेक और भर्तियां न होने से नियमित कर्मचारियों की संख्या लगातार घट रही
विकास नंदानिया / दैनिक आवाज़ /भोपाल। मप्र में सरकारी विभागों पर दिन पर दिन काम का बोझ बढ़ रहा है, लेकिन विडंबना यह है कि उस काम को करने वाले नियमित कर्मचारियों की संख्या लगातार घट रही है। आलम यह है कि पिछले 3 साल में प्रदेश में 1.66 लाख से अधिक नियमित कर्मचारियों की संख्या कम हो गई है। जानकारों का कहना है की प्रमोशन पर ब्रेक और नई भर्तियां नहीं होने के कारण नियमित कर्मचारियों का कैडर गड़बड़ा गया है।दरअसल, मप्र में पिछले एक दशक से सरकारी विभागों में कर्मचारी रिटायर तो हो रहे हैं, लेकिन उस अनुपात से भर्तियां नहीं हो रही हैं। इस कारण विभागों में बड़ी संख्या में पद खाली हैं। ऐसे में विभागों में काम कराने के लिए संविदा नियुक्ति और आउट सोर्स पर कर्मचारी रखने की नीति के कारण भी नियमित कर्मचारियों की संख्या लगातार घट रही है। सरकारी अमले में नियमित कर्मचारियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। खासकर विभागों में 8 साल से प्रमोशन नहीं होने और विभिन्न श्रेणी के पद खाली होने की वजह से सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों की संख्या घटकर 5 लाख 90 हजार रह गई है, जबकि तीन साल पहले यह संख्या 7 लाख 56 हजार हुआ करती थी।
18 से 21 साल का एक भी प्रथम श्रेणी अफसर नहीं
प्रदेश के सरकारी विभागों में भर्तियां नहीं होने का परिणाम यह हैं कि विभागों में उम्रदराज कर्मियों से काम कराया जा रहा है। प्रथम श्रेणी में तो 25 साल तक की आयु के सिर्फ 19 ही अधिकारी कार्यरत हैं। वहीं सेकेंड क्लास में 169 अधिकारी काम कर रहे हैं। संविदा नियुक्ति और आउट सोर्स पर कर्मचारी रखने की नीति के कारण भी नियमित कर्मचारियों की संख्या में कमी आई है। प्रदेश में 18 से 21 साल की आयु का एक भी युवा प्रथम श्रेणी अफसर नहीं है, जबकि 22 से 25 साल की आयु के 19 अफसर हैं। मप्र में प्रथम श्रेणी के 8,049 अधिकारी कार्यरत हैं, वहीं, सेकेंड क्लास अफसरों की संख्या भी सरकारी भर्तियों में गड़बड़ी, ओबीसी आरक्षण और कई मामले कोर्ट में लंबित रहने की वजह से 38 हजार 432 रह गई है। एक समय मप्र में 7 लाख से अधिक नियमित कर्मचारी और अधिकारी हुआ करते थे। लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या 4 लाख 90 हजार 550 है। दरअसल, संविदा नियुक्ति और आउट सोर्स पर रखे जाने वाले कर्मचारियों के कारण भी नियमित कर्मचारियों की भर्ती नहीं की जा रही है। वर्तमान में तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर भर्ती का काम मप्र कर्मचारी चयन मंडल (व्यापमं) द्वारा किया जाता है, जबकि आउट सोर्स पर कर्मचारी रखने का काम सीधे विभागों द्वारा किया जा रहा है। सरकारी विभागों के आंकड़े देखें तो प्रथम श्रेणी के अधिकारियों में सबसे ज्यादा उच्च शिक्षा में 2 हजार 96 अफसर कार्यरत हैं। इसके बाद गृह विभाग में 293 आईपीएस अधिकारी है, आदिम जाति कल्याण में 104, स्कूल शिक्षा में 105, स्वास्थ्य में एक हजार 27, राजस्व में 180, फॉरेस्ट में 125, विधि विधायी में 859 और सरकार के अन्य 46 विभाग में 3,260 अधिकारी काम कर रहे हैं।
कैडर मैनेजमेंट पॉलिसी बनानी होगी
जानकारों का कहना है कि जिस तेजी से प्रदेश में नियमित कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं उससे विभागों में कार्य व्यवस्था प्रभावित होगी। राज्य सरकार के पास कैडर मैनेजमेंट की अब तक कोई पॉलिसी नहीं है, जो बनानी होगी। साथ ही सीधी भर्ती पर लगी रोक हटाना होगी। विभागों में करीब 2.5 लाख अधिकारी-कर्मचारी 2025 के अंत तक रिटायर हो रहे हैं।
सभी विभागों में कम हो रहे हैं कर्मचारी
आज प्रदेश में स्थिति यह है कि लगभग सभी विभागों में नियमित कर्मचारियों की संख्या लगातार कम हो रही है। प्रशासनिक क्षेत्र में नियोजन को लेकर प्रस्तुत रिपोर्ट में वर्तमान में सबसे ज्यादा कर्मचारी 2 लाख 17 हजार 470 स्कूल शिक्षा विभाग में हैं। इसके बाद पुलिस, होमगार्ड में 95 हजार 923 कर्मचारी हैं। एक समय पुलिस में एक लाख 20 हजार कर्मचारी हुआ करते थे। वहीं जनजातीय कार्य एवं अनुसूचित जाति में कर्मचारियों की संख्या 65 हजार 626 है, तो स्वास्थ्य विभाग में 47 हजार 760, राजस्व में पटवारी, राजस्व निरीक्षक, नायब तहसीलदार, तहसीलदार आदि की संख्या 26 हजार 268 है। फॉरेस्ट में यह संख्या 22 हजार से घटकर 18 हजार 747 रह गई है और विधि विधायी विभाग में 17 हजार 498 तथा उच्च शिक्षा में 10 हजार 812 नियमित कर्मचारी कार्यरत हैं। यानि ये सरकार के 8 विभागों की स्थिति है, जबकि बकाया 46 विभागों में 90 हजार 446 कर्मचारी ही कार्यरत हैं।
ओबीसी आरक्षण है समस्या का प्रमुख कारण
मध्यप्रदेश मे ओबीसी आरक्षण के कारण समस्त भर्तियां लगभग 2019 से प्रभावित है।27% ओबीसी आरक्षण देने के सम्बन्ध मे मुख्यमंत्री मोहन यादव मंच से एलान भी कर चुके है। किन्तु उन्ही के अधिकारियो द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री की घोषणा का खंडन भी किया गया था। सूत्रों कि माने तो मुख्यमंत्री ने मंगलवार शाम को शिक्षा विभाग की एक समीक्षा बैठक बुलाई थी, बैठक मे रिक्त पद से सम्बंधित जानकरिया मांगी थी। जिसमे प्रदेश के शिक्षकों की भर्ती एक अहम मुद्दा था। बता दे उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती 2018 मे पहली बार शिक्षकों के 911 पद होल्ड किए थे। उसके बाद ये सिलसिला सतत चलते आ रहा है। मुद्दों को तकनिकी तौर पर निपटाया भी जा सकता है, किन्तु विधि विशेषज्ञ इस सम्बन्ध मे विभाग को कोई सलाह नहीं देते। उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती 2018 मे जिन अभ्यर्थियो के द्वारा याचिका दायर की गयी थी, उन अभ्यर्थियो को गत वर्ष विभाग द्वारा नियुक्ति प्रदान कर दी गयी थी। किन्तु याचिकाकर्ताओ द्वारा हित प्रभावित न होने के बावजूद याचिका को वापिस नहीं लिया गया। जिससे 911 अभ्यर्थियो का भविष्य अधर मे लटक गया।ज्ञात रहे वर्ष 2018 शिक्षक भर्ती एक अवमानना याचिका के कारण रोकी गयी थी जिसका निस्तारण भी गत वर्ष हो चुका है। जिसमे मोडीफिकेशन को सही करार दिया गया था। किन्तु याचिका निस्तारण के बाद भी भर्ती प्रक्रिया को प्रोविजनली आगे नहीं बढ़ाया गया। इसी क्रम मे वर्ष 2020 मे प्राथमिक शिक्षकों के 882 पदों को भी होल्ड कर दिया गया था जिन पर आज तक भर्ती नहीं हो पायी है।
पहले किया अनहोल्ड फिर किया होल्ड :
राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा ओबीसी आरक्षण ले सम्बन्ध मे एमपीएजुकेशन पोर्टल पर गतरात्रि एक परिपत्र अपलोड किया गया था। जिसमे इंदौर खंड पीठ की ओबीसी आरक्षण से सम्बंधित याचिका का उल्लेख था। उप सचिव मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग संदर्भित पत्र मे नियुक्ति सम्बंधित कार्यवाही के निर्देश थे। पत्र पर 09 जुलाई अंकित थी, जो 10 जुलाई को पोर्टल पर अपलोड हुआ था। किन्तु 11 जुलाई को देर शाम बिना कोई कारण बताए निरस्त कर दिया गया। जिससे प्रदेश के हजारों बेरोजगार अभ्यर्थियो की खुशी महज 24 घंटो मे फिर मातम मे बदल गयी।
पदों को अनहोल्ड करने वाला पत्र
पुनः होल्ड करने वाला पत्र