HomeE-Paperसात जजों की नियुक्ति वाली याचिका ख़ारिज

सात जजों की नियुक्ति वाली याचिका ख़ारिज

जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट जबलपुर में एक अहम याचिका जिसमें हाईकोर्ट के नव नियुक्त सात जजों की नियुक्ति की अधिसूचना दिनांक 02/11/2023 की संवैधानिकता को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता मारुति सोंधिया द्वारा अधिवक्ता उदय कुमार साहू के माध्यम से दिनांक 4 नवंबर 2023 को याचिका दायर करके चुनौती दी गई थी।जिसमे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया के कॉलेजियम की जातिवादी वर्ग वादी एवं परिवारवादी व्यवस्था को चुनौती दी गई थी ! याचिका में आरोप था कि हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान में विहित सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज करके एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम पीढ़ी दर पीढ़ी हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति हेतु कलेजीयम द्वारा प्रेषित किए जाते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 13,14, 15,16 एवं 17 के प्रावधानों तथा भावना के विपरीत है। भारत के संविधान मे सामाजिक न्याय तथा आर्थिक न्याय की आधार शिला रखी गई है, उक्त सामाजिक न्याय को साकार करने के लिए न्यायपालिका में सभी वर्गो का अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है उक्त संबंध में करिया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से व्याख्या करती है, कि हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में एक जाति वर्ग विशेष के ही जजों की नियुक्ति होने से बहुसंख्यक समाज के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से कानून का गलत अर्थान्वयन करके उनको संवैधानिक अधिकारो से वंचित किए जाने के देश में हजारों फैसले है। उक्त याचिका की दिनांक 28/05/2024 प्रारंभिक सुनवाई, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश श्री शील नागू तथा जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ द्वारा की गई थी। उक्त याचिका में दिनांक 04/06/2024 को नौ पेज का निर्णय पारित करके हाईकोर्ट द्वारा आपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों को रेखांकित करके, व्यक्त किया गया है कि कलेजीयम का भारत के संविधान में भले ही कोई व्यवस्था नहीं की गई है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कलेजीयम व्यवस्था प्रचलन में है जिसे संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत देश की सम्पूर्ण न्यायपालिका एवं विधायिका मानने को बाध्य है। हाईकोर्ट ने याचिका में उठाय गए मुद्दों से सावधानी पूर्वक किनारा काटते हुए 9 पेज का फैसला पारित करके याचिका निरस्त कर दीं गई है। ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि उक्त फैसले के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में एस.एल.पी. दायर की जाएगी। ज्ञातव्य हो कि विधि एवं सामाजिक न्याय मंत्रालय भारत सरकार ने 2021 तथा 2022 में देश के समस्त हाईकोर्ट को पत्र प्रेषित करके आग्रह किया गया था कि संबंधित हाई कोर्ट के कॉलेजियम ओबीसी,एस.सी.,एस.टी.,महिलाए तथा अल्पसंख्यक वर्ग के अधिवक्ताओ तथा पदोन्नति से हाई कोर्ट जज के रूप में
नियुक्ति हेतु आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए नाम प्रेषित किए जाए।उक्त तत्व का भी हाईकोर्ट द्वारा अपने फैसले में कहीं उल्लेख नहीं किया गया है! उक्त पत्र की प्रति ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के पास मौजूद है।
मध्य प्रदेश साहित देश की समस्त न्यायपालिका में एक वर्ग जाति विशेष का ओवर रिप्रेजेंटेशन है जबकि ओबीसी एससी एसटी एवं महिलाओं का न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व दो या तीन परसेंट ही है अर्थात जहां आरक्षण का प्रावधान नहीं है वहां न्यायपालिका संपूर्ण पदों को एक जाति तथा वर्ग विशेष के लिए आजादी के बाद से आरक्षित मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी नियुक्तियां की जा रही है यश का करता की ओर से पैरवी उदय कुमार साहू तथा कृष्ण कुमार कबीरपंथी ने की।

RELATED ARTICLES

Most Popular